Kabir (कबीर) by Abida (आबिदा)
Have been listening to the album Kabir by Abida today, and am loving it… Gulzaar Sahab introducing every song is a treat to the ears as well!
Here are some verses that I loved and managed to write while listening..
मन लागो यार फकीरी में…
माला कहे हैं काठ की तू क्यों फेरे मोय
मन का मनका फेर दे तुरत मिला दूं तोये
कबीरा सो धन संचिये जो आगे को होए
सीस चड़ाए गाठरी जात न देखा कोय
माली आवत देख के कालिया करे पुकार
फूल फूल चुन लिए कल हमारी बार
चाह गई चिंता मिति मनवा बेपरवाह
जिनको कछु न चाहिए वो ही शहंशाह
Hear a part of it yourself, and love it…