पिक्चर : शोले
सन : १९७५ (1975)
निर्देशन : रमेश सिप्पी
निर्माता : जी पी सिप्पी
कथाकार : जावेद अख्तर, सलीम खान
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
अब मैं क्या बोलूं? मुझे तो सब पुलिसवालों की शक्लें एक जैसी लगती हैं…
शायद खतरों से खेलने का शौक है मुझे…
लेकिन ! भागने की कोशिश मत करना !!!
वीरू से टक्कर !!!
मैंने कहा था… भागने की कोशी श श श … क्या बोलता है? भाग तो सकते हैं ! इससे इस हालत में छोड़ कर?
खाना पीना साथ है, मरना जीना साथ है…. सारी ज़िन्दगी…
ये दोस्ती …….
अरे उठाओ अपनी लकड़ी और निकालो पैसे
पैसे ! ऐसे कैसे पैसे मांग रहे हो?
वो नोट तो दो रुपे का था !
अरे तो ये लकड़ी दो रुपे की है !
दो रुपे में इत्ती सी लकड़ी !!
और नहीं तो क्या दो रुपे में आप सारा जंगल खरीदने निकले थे?
सूरमा भोपाली, हम जेल जाना चाहते हैं !
अल्लाह आपकी तम्मना पूरी करे !
भोपाल होता तो हम वैसे ही दो मिनट में आपको अन्दर करवा देते ! हमारा नाम सूरमा भोपाली वैसे ही नै ये!
क्या के रहे हो आप !!!
अगला सीन है जेल का… वहां से कहानी बाद में !!!! इंतज़ार कीजिये भाग २ का !!!
तब तक शब्बा खैर !
ओह, और हाँ ! यहाँ पर सिर्फ़ मजाकिया भाग पेश किए जायेंगे॥ कृपया और किसी तरह के भागों की अपेक्षा न करें।