देखो एक बेचारा
सुबह सवेरे उठकर, बॉस फाइल अभी लाया चिल्ला रहा है!
सुबह सवेरे उठकर, बॉस फाइल अभी लाया चिल्ला रहा है!
देवताओं ने पवनपुत्र हनुमान्जी को जाते हुए देखा। उनकी विशेष बल-बुद्धि को जानने के लिए उन्होंने सुरसा नामक सर्पों की माता को भेजा, उसने आकर हनुमान्जी से यह बात कही, आज देवताओं ने मुझे भोजन दिया है। यह वचन सुनकर पवनकुमार हनुमान्जी ने कहा- श्री रामजी का कार्य करके मैं लौट आऊँ और सीताजी की खबर प्रभु को सुना दूँ
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥तब मैं आकर तुम्हारे मुँह में घुस जाऊँगा और तुम मुझे खा लेना । हे माता! मैं सत्य कहता हूँ, अभी मुझे जाने दे। जब किसी भी उपाय से उसने जाने नहीं दिया, तब हनुमान्जी ने कहा- तो फिर मुझे खा न ले उसने योजनभर मुँह फैलाया। तब हनुमान्जी ने अपने शरीर को उससे दूना बढ़ा लिया। उसने सोलह योजन का मुख किया। हनुमान्जी तुरंत ही बत्तीस योजन के हो गए
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी, हनुमान्जी उसका दूना रूप दिखलाते थे। उसने सौ योजन मुख किया। तब हनुमान्जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया और उसके मुख में घुसकर तुरंत बाहर निकल आए और उसे सिर नवाकर विदा माँगने लगे। उसने कहा मैंने तुम्हारे बुद्धि-बल का भेद पा लिया, जिसके लिए देवताओं ने मुझे भेजा था
दोहा :
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान। आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥
तुम श्री रामचंद्रजी का सब कार्य करोगे, क्योंकि तुम बल-बुद्धि के भंडार हो। यह आशीर्वाद देकर वह चली गई, तब हनुमान्जी हर्षित होकर चले
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
भावार्थ:-जाम्बवान् के सुंदर वचन हनुमानजी के हृदय को बहुत ही भाए। वे बोले- हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना जब तक मैं सीताजी को देखकर लौट न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमानजी हर्षित होकर चले
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥
भावार्थ:-समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी अनायास ही कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके उस पर से बड़े वेग से उछले। जिस पर्वत पर हनुमानजी पैर रखकर चले, वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का बाण चलता है, उसी तरह हनुमानजी चले
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥
भावार्थ:-समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो।
दोहा :
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥
भावार्थ:-हनुमानजी ने उसे हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?
The first part of this Shlok is devoted to Bhagwan Ram. In this Shlok, devotee asks his Bhagwaan Ram to grant complete devotion towards Him.
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
मंगलाचरण
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्
डिब्बे और बाल्टी से नहाने का
ॐ द्यौ शान्तिरन्तरिक्ष: शांति: पृथ्वी शान्तिराप: रोशाधय: शांति: |
और एक दिन
और एक शाम
तेरे नाम
ज़िन्दगी
तू न होती तो कुछ भी न होता
ना हंसी ना ख़ुशी और ना सदमा होता
बस वक़्त होता
गुज़रा हुआ
और गुज़रने वाला
तू न होती तो कुछ भी न होता
ना किसी चीज़ की ख्वाहिश
ना दिल में कोई अरमां
बस अँधेरा
गहरा
काला
पर तू है
मेरी है
मेरे वजूद की वजह
मेरी हंसी
मेरी ख़ुशी
मेरा ग़म
मेरी आवाज़
मेरी ख़ामोशी
एक और दिन
एक और शाम
ज़िन्दगी
तेरे नाम
जनाब शायर प्रशांत भारद्वाज बुलंदशहर वाले आप लोगों से कुछ दिन के लिए इजाज़त लेते हैं…
फिर मिलेंगे
हम लोग!
सुश्री मयूरी चतुर्वेदी से प्रार्थना है के कृपया चाय की दुकान के आगंतुकों के लिए एक नूतन वेबदैनिकी चिटठा लिखें!
2 ones are 2
2 twos are 4
naah…
2 oneza too
2 toozaa foor
2 threezaa siiix
2 forza eeeeight
2 fiveza teeen
2 sixza twwwwelve
2 sevenza foorteeen
2 ate-za sixteeeen
2 nine-za eighteeeen
2 tenza twenty
ikk duni do
do duni chaar
tinn duni che
chaar duni aath
punj duni dus
che duni baraanh
sat duni chaudanh
aath duni solanh
nau duni athaaranh
dus duni veeh!
2 ekum do
2 dooni chaar
2 tiya che
2 chawke aath
2 panje dus
2 chikke baraa
2 satte chaudhah
2 atthe solah
2 nimme at-tharah
2 dhain bees
and while we are at it… why don’t we sing along with my favorite Shammi Kapoor!!!
एक सीटी के बाद गैस पर से हटा दीजिये…और भाप निकलने तक इंतज़ार कीजिये! फिर प्रेशर कुकर का ढक्कन हटा कर, धीमी आंच पर दल को पकने दीजिये!
एक बड़ा प्याज लीजिये और उसके छोटे छोटे छोटे छोटे टुकड़े कर लीजिये! थोडी सी ताज़ी अदरक और लहसुन लेकर उसके भी छोटे छोटे छोटे छोटे टुकड़े कर लीजिये! एक बर्नर पर भारी तले का कोई बर्तन लेकर थोडा सा तेल या घी गरम कर लीजिये…तेल गरम होने पर थोडा सा जीरा दाल कर भूनिए! कुछ ५ सेकंड बाद प्याज दाल दीजिये! और फिर कुछ देर में अदरक और लहसुन भी डालिए! थोडा भून-ने के बाद हरी मिर्च के कुछ टुकड़े भी डालिए!
थोडा सा गरम मसाला डालिए और कुछ देर भूनिए! प्याज भूरी हो जाने पर, उबलती हुई दाल में डालिए… स्वादानुसार नमक डालिए| १० मिनट तक पकाइए! १५ या २० मिनट भी पका सकते हैं…
दाल को सूंघ कर देखिये… अच्छी खुशबू आ रही हो तो ज़रा सी चख कर देखिये! नहीं आ रही हो तो भी चख कर देखिये! और मसाला या नमक ठीक करिए!!!
२०-३० मिनट में मस्त दाल तैयार!!!!
नौकरी धंदे पर तरक्की की कार्यनीति बनाने के लिए कुछ विचार :
अपने से वरिष्ठ पदाधिकारी की मेज़ में अपने पुराने मोज़े रख दें. रोज़ सुबह दफ्तर जाकर वही मोज़े पहने औरध्यान रखें के उनको धोएं नहीं! यदि आप दफ्तर में बहुत ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं और आपके मोज़े में सेबदबू आने लगी है, तो आपने उच्चतर पदाधिकारी को इसकी सूचना आपके बदबूदार मोज़े से मिल जायेगी
इस परिस्थिति में दो बातें हो सकती हैं
१. या तो आपको तरक्की मिलेगी
२. या फिर आपका बॉस आपको साबुन खरीदने के लिए कहेगा!
तरक्की मिली तो ठीक, यहीं साबुन खरीदने की बात आये तो अपनी आर्थिक स्थिति का वास्ता देकर अपने घर कीखस्ता हालत का बखान करके तरक्की पाने की कोशिश करें
इस परिस्थिति में दो बातें हो सकती हैं
१. या तो आपको तरक्की मिलेगी
२. या फिर आपका बॉस आपको दफ्तर से बहार जाने के लिए बोलेगा
तरक्की मिली तो ठीक, यदि बहार जाने की बात आये तो चुपचाप चले जायें! और अपने मोजा-दस्तूर चालू रखें. कुछ दिनों में परेशान होकर आपका बॉस इस समस्या को हल करने का प्रयत्न करेगा!
इस परिस्थिति में दो बातें हो सकती हैं
१. या तो आपको तरक्की मिलेगी
२. या आपका बॉस ही नौकरी छोड़ कर चला जायेगा!
तरक्की मिली तो ठीक, बॉस ने नौकरी छोड़ी, तो कम से कम बॉस तो नया मिलेगा! कहते हैं न भागते भूत की तोलंगोटी बहुत!
बोलो राधे श्याम राधे श्याम!
नीचे लिखी कुछ पंक्तियों का विशलेषण और व्याख्या करें
मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा
मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा
वो खेत में चारा चरती थी
तेरे बाप का वो क्या करती थी
तेरी भैंस ने इतना दूध दिया
मेरा लोटा उसमे डूब गया!
तेरी भैंस को डंडा यूं मारा !!!
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इस पोस्ट पर मिली प्रतिक्रिया मुझे ऐसा प्रतीत करा रही हैं, जैसे कुछ व्यक्ति विशेष इस गाने के बारे में नहीं जानते!
ये गीत है, १९७० (1970) में बनी फिल्म “पगला कहीं का” से! संगीत दिया है शंकर जयकिशन ने और आवाज़ है मेरे प्रीय मन्ना डे की! लोटे वाली लाइन इस गाने में नहीं हैं… वो मेरे मामाजी की हैं !!!
* ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनु स्मरणम्
*Arjuna said:
The world is delighted by your praise, O Hrisikesha
All are happy and rejoicing
The evil raksha are flying away with fear,
And all devotees bow before you.
*Krishna said:
It [the knowledgable] has hands and legs everywhere,
It has eyes head and mouth everywhere,
It has ears everywhere in the world
And it exists in all the creatures of this world.
* Think of Him, as ancient, omniscient spread everywhere,
Ruler of all, much subtler than tha subtle,
Protector of all with his inconceivable form which is beyond thought,
With the colour of Sun and transcendental beyond dark thoughts.
5. कृष्ण उवाच
* With roots upwards and branches growing down,
Like a Banyan tree with Vedas as its leaves,
The tree of knowledge is everlasting and immortal,
And whosoever knows it, knows the Vedas.
* I am seated in everybody’s heart,
And from me are Memory, wisdom and their loss,
And form all the Vedas, I alone am the subject to be known,
For I created them and I am the one knower of the Vedas.
7. कृष्ण उवाच
* Focus your mind on me,
Be my devotee, Sacrifice for me, Bow down to me,
And I promise to you because you are dear to me,
That definitely you will come to me.