समझ
बोली तो समझ में आती है
कुछ बातें समझ में आती नहीं
मैं एक पतंग को जानता हूँ
जिस का रिश्ता आकाश से है
जो उड़ जाये तो उड़ जाये
पर बंधी हुई किसी पाश से है
बिजली के तारों में उलझी वो
रह रह कर सर को उठाती है
खींच के लम्बी सांस कभी
आखिर क्यों उड़ जाती नहीं ?
बोली तो समझ में आती है
कुछ बातें समझ में आती नहीं
मैं घिरा भीड़ से रहता हूँ
जिस में काने है लोग सभी
जो देखते है मुझ को आधा
और आधे है मेरे दोस्त सभी
मुझ से टकराकर रूकते है
फिर अपनी राह को जाते है
फोड़ के मेरी आँख कभी
क्यों भीड़ मुझे अपनाती नहीं ?
बोली तो समझ में आती है
कुछ बातें समझ में आती नहीं – धुर्जटा