राह
नशे में किया हुआ इक वादा
होश के काँधे पर बैठा है
बचपन में देखे थे सपने
वो सब कितने बचकाने है
हर दिन एक लकीर को काट मैं
थोडा आगे बढ़ जाता हूँ
नज़र जहाँ तक जाती है
बस खड़ी लकीरें ही पता हूँ
आते जाते तुम ने मुझ को
यहाँ से अकसर देखा होगा
इस बार मैं ये कहने आया हूँ
बहुत हुआ अब मैं जाता हूँ- धुर्जटा