सिस्टम की कहानी (System ki Kahani)
मेरा होश सँभालते ही, मासूमियत के समझदारी में बदलते ही
एक दुश्मन से मुलाकात हुई
क्या नाम दूं उसे ये समझ पाने की मुशक्कत में
रात से दिन और दिन से रात हुई
फिर एक दिन शाम को आवारागर्दी करते हुए
एक दोस्त से एक शिकायत सुनी
भाई बोला – यार गलती मेरी नहीं है| ये साले सिस्टम की है||
अगस्त में पढ़ाओ, फिर दश्हेरा, दिवाली, क्रिसमस की छुट्टी दो,
अप्रैल में परीक्षा लो, और पास नहीं हुए तो गाली दो|
अब मैंने थोड़े ही कहा है एक साल का इंतज़ार करो
पढ़ाओ, और पूछ लो
ना बता पाएं तो पीट लो
पर नहीं, सिस्टम ही ऐसा है के साल भर पढ़ कर ही फेल हो सकते हो पहले नहीं
ये साला सिस्टम ही ख़राब है
तब समझ में आया, के स्कूल एक सिस्टम है
सिस्टम का जो दिल करे जब दिल करे,
कर सकता है और करवा सकता है
पूरी बाल्टी पानी की खाली करके, फिर भरवा सकता है
ये समझ में भी आया के सिस्टम ज़्यादातर ख़राब ही होता है
न किसी की सुनता न समझता है
सिर्फ अपने कायदे और अपने कानून से ही चलता है
सोचने समझने में शाम से रात हो गई
सिस्टम और उसकी तानाशाही आई गई बात हो गई||
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