मज़ा ही कुछ और है!!
This is dedicated to one of my favorite poets, Pandit Om Vyas Om. He wrote a poem “Maza hi kuch aur hai” and I wrote what is below!
डिब्बे और बाल्टी से नहाने का
ठिठुरते शरीर पर लिफेबोय साबुन लगाने का
ठंडा पानी लगने पर जोर से जय राम जी की जय राम जी की चिल्लाने का
मज़ा ही कुछ और है|
चलती डी टी सी में भाग कर चड़ने का
छुट्टे ना देने पर कांदुक्टोर से झगड़ने का
खिड़की से आ रही ठंडी हवा पर हथेली आपस में रगड़ने का
मज़ा ही कुछ और है|
धुंध में सामने वाली गाडी के पीछे पीछे चलने का
थोड़ी सी सड़क साफ़ होते ही फटाक से आगे निकलने का
और कोई खुद से आगे निकले तो गाली बकने का
मज़ा ही कुछ और है|
ठेले की बगल में टिक्की खाने का
गोलगप्पे में थोड़ी सौंठ डलवाने का
मिर्चा लगने पर सी सी करके चिल्लाने का
मज़ा ही कुछ और है|
रजाई में दुबके रहने का
मोबाइल फ़ोन पर सबसे छुपा कर धीरे धीरे कुछ कहने का
किसी के प्यार में थोडा सा गम सहने का
मज़ा ही कुछ और है|
देसी घी में खाना बनाने का
तंदूरी परांठे पर सफ़ेद मक्खन लगाने का
पेट भर कर खाने के बाद, बस एक और गुलाब जामुन खाने का
मज़ा ही कुछ और है|
गली के कोने वाली मार्केट में बाल कटवाने का
१० रूपये में शेव करने का
ओल्ड इसपाईस की बोतल में रखा सस्ता आफ्टर शेव लगवाने का
मज़ा ही कुछ और है|
organic की जगह herbal शेम्पू लगाने का
“over the counter ” की जगह आयुर्वेदिक दवाई खाने का
बीमार पड़ने पर घर के नुस्खे आजमाने का
मज़ा ही कुछ और है|
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