और कहीं दिन बीते…
आज सोया तो सपने में सपना था…
के नींद खुले तो कहीं और…
किसी और शहर में…
किसी पहाड़ की गोद में…
किसी नदी के किनारे…
कहीं दूर किसी स्टेशन पर चाय चाय की आवाज़ से..
किसी छोटे बस स्टैंड पर पकोडे की खुशबु से…
बस कंडक्टर की सीटी से…
और दिन बीते कहीं
बातें करते
किसी छोटी सी गली में घूमते घूमते
एक छोटी सी चाय की दुकान पर बातें सुनते
चाय पीते रस खाते मट्ठी खाते
और फिर एक और प्याली चाय पीते
कुछ राह चलते लोगों की खेरियत पूछते
कुछ बच्चो के साथ पिट्ठू खेलते
कहीं एक नाव में नदी पार करते
किसी खेत में एक डंडी लेकर घूमते
गाँव में सर्दी की मीठी मीठी धुप का मज़ा लेते
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